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*संवेदनाओं से खेलती फिजां को सलाम,चैती शुभरात्रिहूं

*संवेदनाओं से खेलती फिजां को सलाम*
चैती शुभरात्रि

हूं उदास ऐसा मैं कहूंगी नहीं
हां तेरे बिन मैं भी रहूंगी नहीं
आवाज मुझ तक आती रहे
कोई मजबूरियां सहूंगी नहीं

हौले से कहती रही ये हवा
मौसम सुनकर चुप ही रहा
कायनात में हम रहें इस तरह
मौसम बिना मैं जिऊंगी नहीं
हूं उदास ऐसा मैं कहूंगी नहीं!
*लता प्रासर*

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