*18मार्च: ऐतिहासिक भाषण,आगरा*
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18मार्च1956 को रामलीला मैदान, आगरा में विशाल जनसभा करने के बाद पड़ोस में ही बाबासाहब डॉ0 अम्बेडकर ने पूर्वोदय बुद्ध विहार (चक्कीपाट, बिजलीघर) में तथागत गौतम बुद्ध की प्रतिमा अपने हाथों से स्थापित की थी। इसके लगभग नौ माह बाद ही 06दिसम्बर 1956 को उनका महापरिनिर्वाण हो गया और 13फरवरी 1957 को बाबासाहेब के पुत्र भैय्यासाहेब यशवंतराव अम्बेडकर द्वारा उनकी अस्थियां लाकर यहाँ पूर्वोदय बुद्ध विहार में स्थापित की गयीं। यहाँ हर वर्ष 06दिसम्बर को उनकी अस्थियां जनता के दर्शनार्थ रखी जाती हैं। इसके बाद, जुलाई 1957 में बौद्ध भिक्षु कौडिन्य ने विशाल बुद्ध विहार का निर्माण कराया। 18 मार्च 1956 को बाबासाहब इस सभा में करीब सायं सात बजे पहुंचे थे और तब भी वहाँ लगभग 40 हजार लोग मौजूद थे जिसमें मास्टर मान सिंह जी एवं आगरा के वरिष्ठ पत्रकार मा0 कृष्ण दत्त पालीवाल जी की प्रमुख उपस्थिति थी। मास्टर मान सिंह जी पूनापैक्ट के विरोध में बाबासाहब द्वारा 1946-47 में आहूत जेल भरो आंदोलन में जेल गए थे और वे उ.प्र. शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन के आगरा शाखा के अध्यक्ष थे तथा बाद में वे चौथी विधान सभा 1967-68 में आगरा (पश्चिमी) के RPI से विधायक भी बने। इस अवसर पर बाबासाहब ने बड़े दु:खी होकर कहा था कि जिन लोगों को शिक्षित करने के लिए मैंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, उनके धोखा देने (सामाजिक जागरूकता ना करने) पर उनका दु:ख इन शब्दों में प्रकट हुआ था कि "मुझे मेरे पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया।" वे मूलनिवासी बहुजन समाज के पढ़े- लिखे लोगों के अंदर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं शैक्षिक विकास करने के लिये संगठन और आंदोलन के माध्यम से चेतना और अहसास पैदा करना चाहते थे। आंदोलन चलाने के लिये साधन- संसाधन की जरूरत थी लेकिन पढ़े-लिखे लोगों ने बाबासाहब को साथ सहयोग नहीं दिया।
👉जन समूह से :- पिछले तीस वर्षों से तुम लोगों को राजनैतिक अधिकारों के लिये मैं संघर्ष कर रहा हूँ। मैंने तुम्हें संसद और राज्यों की विधान सभाओं में सीटों का आरक्षण दिलवाया। मैंने तुम्हारे बच्चों की शिक्षा के लिये उचित प्रावधान करवाये। आज हम प्रगति कर सकते हैं। अब यह तुम्हारा कर्त्तव्य है कि शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक गैर बराबरी को दूर करने हेतु एक जुट होकर इस संघर्ष को जारी रखो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये तुम्हें हर प्रकार की कुर्बानियों के लिये तैयार रहना होगा, यहाँ तक कि खून बहाने के लिये भी।
👉नेताओं से :- यदि कोई तुम्हें अपने महल में बुलाता है तो स्वेच्छा से जाओ लेकिन अपनी झोपड़ी में आग लगाकर नहीं। यदि वह राजा किसी दिन आपसे झगड़ता है और आपको अपने महल से बाहर धकेल देता है, उस समय तुम कहां जाओगे ? यदि तुम अपने आपको बेचना चाहते हो तो बेचो, लेकिन किसी भी हालत में अपने संगठन को बर्बाद होने की कीमत पर नहीं। मुझे दूसरों से कोई खतरा नहीं है, लेकिन मैं अपने लोगों से ही खतरा महसूस कर रहा हूँ।
👉भूमिहीन मजदूरों से :- मैं गाँव में रहने वाले भूमिहीन मजदूरों के लिये काफी चिंतित हूँ। मैं उनके लिये ज्यादा कुछ नहीं कर पाया हूँ। मैं उनके दुख तकलीफों को नजरन्दाज नहीं कर पा रहा हूँ। उनकी तबाहियों का मुख्य कारण उनका भूमिहीन होना है। इसलिए वे अत्याचार और अपमान के शिकार होते रहते हैं और वे अपना उत्थान नहीं कर पाते। मै इसके लिये संघर्ष करूंगा। यदि सरकार इस कार्य में कोई बाधा उत्पन्न करती है तो मैं इन लोगों का नेतृत्व करूंगा और इनकी वैधानिक लड़ाई लडूँगा। लेकिन किसी भी हालात में भूमिहीन लोगों को जमीन दिलवाले का प्रयास करूंगा।
👉अपने समर्थकों से :- बहुत जल्दी ही मैं तथागत बुद्ध के धर्म को अंगीकार कर लूंगा। यह प्रगतिवादी धर्म है। यह समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व पर आधारित है। मैं इस धर्म को बहुत वर्षों के प्रयासों के बाद खोज पाया हूँ। अब मैं जल्दी ही बुद्धिस्ट बन जाऊंगा। तब एक अछूत के रूप में मैं आपके बीच नहीं रह पाऊँगा, लेकिन एक सच्चे बुद्धिस्ट के रूप में तुम लोगों के कल्याण के लिये संघर्ष जारी रखूंगा। मैं तुम्हें अपने साथ बुद्धिस्ट बनने के लिये नहीं कहूंगा, क्योंकि मैं आपको अंधभक्त नहीं बनाना चाहता परन्तु जिन्हें इस महान धर्म की शरण में आने की तमन्ना है वे बौद्ध धर्म अंगीकार कर सकते हैं, जिससे वे इस धर्म में दृढ़ विश्वास के साथ रहें और बौद्धाचरण का अनुसरण करें।
👉बौद्ध भिक्षुओं से :- बौद्ध धम्म महान धर्म है। इस धर्म के संस्थापक तथागत बुद्ध ने इस धर्म का प्रसार किया और अपनी अच्छाईयों के कारण यह धर्म भारत में दूर-२ तक गली-कूचों में पहुंच सका। लेकिन महान उत्कर्ष पर पहुंचने के बाद यह धर्म 1213 ई. में भारत से विलुप्त हो गया जिसके कई कारण हो सकते हैं। एक प्रमुख कारण यह भी है कि बौद्ध भिक्षु विलासितापूर्ण एवं आरामतलब जिदंगी जीने के आदी हो गये थे। धर्म प्रचार हेतु स्थान-२ पर जाने की बजाय उन्होंने विहारों में आराम करना शुरू कर दिया तथा रजवाड़ों की प्रशंसा में पुस्तकें लिखना शुरू कर दिया। अब इस धर्म की पुनर्स्थापना हेतु उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। उन्हें दरवाजे-२ जाना पड़ेगा। मुझे समाज में ऐसे बहुत कम भिक्षु दिखाई देते हैं, इसलिये जन साधारण में से अच्छे लोगों को भी इस धर्म प्रसार हेतु आगे आना चाहिये और इसके संस्कारों को ग्रहण करना चाहिये।
👉शासकीय कर्मचारियों से :- हमारे समाज की शिक्षा में कुछ प्रगति हुई है। शिक्षा प्राप्त करके कुछ लोग उच्च पदों पर पहुँच गये हैं परन्तु इन पढ़े-लिखे लोगों ने मुझे धोखा दिया है। मैं आशा कर रहा था कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे समाज की सेवा करेंगे, किन्तु मैं देख रहा हूँ कि छोटे और बड़े क्लर्कों की एक भीड़ एकत्रित हो गई है, जो अपनी तोंदें (पेट) भरने में व्यस्त हैं। मेरा आग्रह है कि जो लोग शासकीय सेवाओं में नियोजित हैं, उनका कर्तव्य है कि वे अपने वेतन का 20वां भाग (5%) स्वेच्छा से समाज सेवा के कार्य हेतु दें। तभी समग्र समाज प्रगति कर सकेगा अन्यथा केवल चन्द लोगों का ही सुधार होता रहेगा। कोई बालक जब गांव में शिक्षा प्राप्त करने जाता है तो संपूर्ण समाज की आशायें उस पर टिक जाती हैं। एक शिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता समाज के लिये वरदान साबित हो सकता है।
👉छात्रों एवं युवाओं से :- मेरी छात्रों से अपील है कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी प्रकार की क्लर्की करने के बजाय उसे अपने गांव की अथवा आस-पास के लोगों की सेवा करनी चाहिये जिससे अज्ञानता से उत्पन्न शोषण एवं अन्याय को रोका जा सके। आपका उत्थान समाज के उत्थान में ही निहित है।
आज मेरी स्थिति एक बड़े खंभे की तरह है, जो विशाल टेंटों को संभाल रही है। मैं उस समय के लिये चिंतित हूँ कि जब यह खंभा अपनी जगह पर नहीं रहेगा। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। मैं नहीं जानता, कि मैं कब आप लोगों के बीच से चला जाऊँ। मैं किसी एक ऐसे नवयुवक को नहीं ढूंढ पा रहा हूँ, जो इन करोड़ों असहाय और निराश लोगों के हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी ले सके। यदि कोई नौजवान इस जिम्मेदारी को लेने के लिये आगे आता है, तो मैं चैन से मर सकूंगा। (बाबासाहेब अम्बेडकर लाइफ एंड मिशन, लेखक: डॉ. एम.एल. परिहार, पृष्ठ: 344-45)
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