कुलदीप आर्य शिवपुरी मो न 9685284284
1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना, काशी की बेटी महारानी लक्ष्मीबाई के शहादत दिवस (17 जुन 1858) पर कोटि कोटि नमन।*
सिंहासन हिल उठे,
राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में भी आई,
फिर से नई जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की,
कीमत सबने पहचानी थी
दूर फ़िरंगी को करने की,
सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन् सत्तावन,
में वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
कानपुर के नाना की,
मुँहबोली बहन ‘छबीली’ थी
लक्ष्मीबाई नाम पिता की,
वह संतान अकेली थी
नाना के संग पढ़ती थी,
वह नाना के संग खेली थी
बरछी ढाल कृपाण कटारी,
उसकी यही सहेली थी
वीर शिवाजी की गाथाएं,
उसको याद ज़बानी थीं
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी ,
वह स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते,
उसकी तलवारों के वार
नकली युद्ध व्यूह की रचना,
और खेलना खूब शिकार
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना,
ये थे उसके प्रिय खिलवाड़
महाराष्ट्र कुल देवी,
उसकी भी आराध्य भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
हुई वीरता की वैभव के साथ
सगाई झाँसी में
ब्याह हुआ रानी बन आई
लक्ष्मीबाई झाँसी में
राजमहल में बजी बधाई,
खुशियाँ छाईं झाँसी में
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि
सी वह आई झाँसी में
चित्रा ने अर्जुन को पाया,
शिव से मिली भवानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
उदित हुआ सौभाग्य,
मुदित महलों में उजियाली छाई
किन्तु कालगति चुपके- चुपके, काली घटा घेर लाई
तीर चलने वाले कर में,
उसे चूड़ियाँ कब भाईं
रानी विधवा हुई हाय,
विधि को भी दया नहीं आई
निःसंतान मरे राजा जी
रानी शोक समानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
बुझा दीप झाँसी का,
तब डलहौजी मन में हर्षाया
राज्य हड़प करने का उसने,
यह अच्छा अवसर पाया
फौरन फौजें भेज,
दुर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर,
ब्रिटिश राज्य झाँसी आया
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा,
झाँसी हुई वीरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
अनुनय विनय नहीं सुनता है,
विकट फ़िरंगी की माया
व्यापारी बन दया चाहता था,
जब यह भारत आया
डलहौजी ने पैर पसारे,
अब तो पलट गई काया
राजाओं नव्वाबों को भी को,
भी उसने पैरों ठुकराया
रानी दासी बनी,
बनी यह दासी अब महरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों बात
कैद पेशवा था बिठूर में,
हुआ नागपुर का भी घात
उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात
जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अ
भी हुआ था वज्र निपात
बंगाले, मद्रास आदि की भी
तो यही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
रानी रोयीं रनिवासों में,
बेगम ग़म से थीं बेज़ार
उनके गहने कपडे बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार
सरे आम नीलाम छापते थे
अंग्रेज़ों के अखबार
नागपुर के ज़ेवर ले लो,
लखनऊ के लो नौलख हार
यों परदे की इज़्ज़त
परदेसी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
कुटियों में भी विषम वेदना,
महलों में आहत अपमान
वीर सैनिकों के मन में था
अपने पुरखों का अभिमान
नाना धुंधूपंत पेशवा
जुटा रहा था सब सामान
बहिन छबीली ने रणचंडी का
कर दिया प्रकट आह्वान
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो
सोई ज्योति जगानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
महलों ने दी आग,
झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी
यह स्वतंत्रता की चिन्गारी
अंतरतम से आई थी
झाँसी चेती, दिल्ली चेती,
लखनऊ लपटें छाईं थी
मेरठ, कानपूर, पटना ने
भारी धूम मचाई थी
जबलपूर, कोल्हापुर में भी
कुछ हलचल उकसानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवरसिंह सैनिक अभिराम
भारत के इतिहास गगन में
अमर रहेंगे जिनके नाम
लेकिन आज जुर्म कहलाती
उनकी जो क़ुरबानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
इनकी गाथा छोड़ चलें हम,
झाँसी के मैदानों में
जहां खड़ी है लक्ष्मीबाई,
मर्द बनी मर्दानों में
लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा,
आगे बढ़ा जवानों में
रानी ने तलवार खींच ली,
हुआ द्वन्द्व असमानों में
जख्मी होकर वॉकर भागा उसे अजब हैरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
रानी बढ़ी कालपी आई,
कर सौ मील निरंतर पार
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर,
गया स्वर्ग तत्काल सिधार
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर
खाई रानी से हार
विजयी रानी आगे चल दी,
किया ग्वालियर पर अधिकार
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने
छोड़ी रजधानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
विजय मिली पर अंग्रेज़ों की,
फिर सेना घिर आई थी
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुँह की खाई थी
काना और मंदरा सखियाँ
रानी के संग आईं थीं
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने
भारी मार मचाई थी
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया,
हाय घिरी अब रानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
तो भी रानी मारकाट कर
चलती बनी सैन्य के पार
किन्तु सामने नाला आया,
था वह संकट विषम अपार
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था,
इतने में आ गए सवार
रानी एक शत्रु बहुतेरे,
होने लगे वार पर वार
घायल होकर गिरी सिंहनी,
उसे वीरगति पानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
रानी गई सिधार,
चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी
मिला तेज से तेज,
तेज की वह सच्ची अधिकारी थी
अभी उम्र कुल तेईस की थी,
मनुज नहीं अवतारी थी
हमको जीवित करने आई,
बन स्वतंत्रता नारी थी
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको
जो सीख सिखानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
जाओ रानी याद रखेंगे,
हम कृतज्ञ भारतवासी
यह तेरा बलिदान जगाएगा स्वतंत्रता अविनाशी
होए चुप इतिहास,
लगे सच्चाई को चाहे फाँसी
हो मदमाती विजय,
मिटा दे गोलों से चाहे झांसी
तेरा स्मारक तू ही होगी,
तू खुद अमिट निशानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुख,
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी,
वह तो झाँसी वाली रानी थी।
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